रायपुर। संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला में पाप भीरुता गुण पर व्याख्यान जारी है। तपस्वी मुनिश्री...
रायपुर। संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला में पाप भीरुता गुण पर व्याख्यान जारी है। तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने सोमवार को कहा कि जीवन के अंदर पाप कम नहीं हो रहा उसका क्या कारण है ? जीवन के अंदर पाप को तोड़ने के लिए जीव पाप का सॉफ्ट कॉर्नर नहीं तोड़ेगा, तब तक उसे जीवन के अंदर सुख की प्राप्ति नहीं होगी। आप अपना आकलन खुद करो कौन सी ऐसी स्थिति है जो हमको आनंदित करती है। जैसे आपने सामूहिक सामायिक करने के लिए अपना नाम लिखवाया और उस समय आपको आपका मित्र फिल्म चलने के लिए टिकट देता है तो आपका ध्यान फिल्म की ओर जाता है। यही चीज ध्यान देना है कि संसार के अंदर हमको क्या आनंदित करती है और क्या चीज के कारण मन में पश्चाताप होता है।
मुनिश्री ने कहा कि इससे पता चलता है कि हमारा सॉफ्ट कॉर्नर धर्म के प्रति है कि पाप के प्रति है।शांति सूरीजी महाराज ने कहा है कि पाप को तोड़ने की बात बहुत बाद में है, पाप को दूर करने की बात बहुत बाद में है, पहले जीवन के अंदर गुण पाप भीरुता का होना चाहिए। जैसे सांप का डर होता है,चाहे सांप विषैला हो या नहीं हो,वैसे ही जीवन के अंदर पाप का डर होना चाहिए। जीवन के अंदर आरंभ समारंभ के कार्य चालू रहेंगे तो मन के अंदर डर के कारण वह कर्म इतनी ज्यादा कठोर नहीं बनेंगे ,क्योंकि पाप का डर बैठा है। इसलिए पाप भीरुता गुण जीवन के अंदर लाओ तो धर्म का प्रवेश होगा।
मुनिश्री ने कहा कि संसार के अंदर हर एक चीज़ हमको चाहिए लेकिन हर एक चीज की प्राप्ति के लिए परमात्मा ने कहा है की धर्म करो। धर्म ही आपके जीवन को सिद्धशीला तक पहुंचाने की सीढी है। यह जानो की शरीर के अंदर जो शक्ति हमें मिली है समझो उसका कारण क्या है ? कार्य एवं कारण दो चीज होती है। जैसे पेड़ में आम दिख रहा तो ऐसे ही नहीं उग गया होगा, उसके उगने का भी कारण होता है, प्रक्रिया होती है। जीवन के अंदर जो भी सुख मिला है वह धर्म से मिला है और जो भी दुख का उदय हुआ है वह पाप से हुआ है।
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