20 फरवरी 2024 | नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देश भर के विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) को नए आपराधिक...
20 फरवरी 2024 | नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देश भर के विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) को नए आपराधिक कानूनों का प्रचार करने और उनसे संबंधित “गलतफहमियों” को दूर करने का निर्देश दिया है। यूजीसी ने जिन “गलतफहमियों” का जिक्र किया है उनमें यह भी शामिल है कि नए कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिये “खतरा” हैं और उनका उद्देश्य “पुलिस राज” स्थापित करना है। यह भी कि इसमें देशद्रोह के प्रावधानों को “देशद्रोह” के तहत बरकरार रखा गया है और ये कानून “पुलिस यातना” का कारक बन सकता है।
विश्वविद्यालयों और एचईआई को अपने संदेश में यूजीसी ने इन गलतफहमियों और सच्चाइयों का उल्लेख करते हुए एक विस्तृत पत्र भी भेजा है। यूजीसी सचिव मनीष जोशी ने कहा, “उच्च शिक्षण संस्थानों से अनुरोध किया गया है कि वे भारतीय न्याय संहिता, 2023 को विस्तृत पत्र में निहित विषयों के आसपास प्रचारित करें और प्रचार सामग्री के माध्यम से प्रदर्शनी अभियान चलाएं, पर्चे वितरित करें और वकीलों, न्यायाधीशों, सेवारत और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों व संस्थान के संबंधित संकाय सदस्यों के साथ संगोष्ठी और वार्ता आयोजित करें।”
उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों से की गई गतिविधियों का विवरण शिक्षा मंत्रालय से साझा करने को कहा है जिन्हें गृह मंत्रालय को भेजा जाएगा। भारतीय साक्ष्य संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 को शीतकालीन सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से सहमति मिलने के बाद इन्हें कानून बना दिया गया। वे क्रमशः भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह लेंगे।
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