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राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के चौड़ीकरण एवं उन्नयन कार्य के बदले 15 हेक्टेयर रकबा में सिंचित क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण से बदली तस्वीर

  जिले में अवस्थित राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के चौड़ीकरण एवं उन्नयन कार्य से हुई वृक्षों की क्षतिपूर्ति को मद्देनजर रखते हुए कैम्पा मद के तहत 29 ...

 


जिले में अवस्थित राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के चौड़ीकरण एवं उन्नयन कार्य से हुई वृक्षों की क्षतिपूर्ति को मद्देनजर रखते हुए कैम्पा मद के तहत 29 लाख 87 हजार रूपए की लागत से दक्षिण कोण्डागांव वनमंडल के दहीकोंगा परिक्षेत्र अंतर्गत बड़ेबेंदरी ईलाके के 15 हेक्टेयर रकबा मे उच्च तकनीक सिंचित क्षतिपूर्ति मिश्रित वृक्षारोपण किया गया है। बड़ेबेंदरी ईलाके में वर्ष 2018-19 के दौरान रोपित पौधे नियमित रूप से सिंचाई एवं देखरेख के फलस्वरूप अब आशातीत रूप से बड़े हो गये हैं, जिसका वर्तमान में जीवित प्रतिशत 95 है। जिससे अब इस ईलाके में हरियाली की छटा बिखरने सहित ठण्डी बयार बह रही है।

डीएफओ दक्षिण कोण्डागांव  आरके जांगड़े ने इस बारे में बताया कि रोपण के पहले उक्त वनभूमि अतिक्रमण से प्रभावित थी, जिसे वन प्रबन्धन समिति के सहयोग से मुक्त कराया गया। पौधारोपण क्षेत्र के चयन उपरांत रोपित किये जाने वाले पौधों की सुरक्षा हेतु चारों तरफ फेंसिंग किया गया। फेंसिंग के लिए सीमेंट के पोल एवं कांटेदार तार का उपयोग किया गया। इस क्षेत्र में वृक्षोरापण कार्य के जरिये ग्रामीणों को गांव में ही बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराया गया। जिसमें बड़ेबेन्दरी और जरीबेन्दरी के 200 से अधिक श्रमिकों ने सागौन, साल, साजा, बीजा, नीम, सीरस, अर्जुन सहित कुसुम, बहेड़ा, जामुन, ईमली आदि फलदार प्रजाति के 15161 पौधे रोपित करने के लिए सक्रिय सहभागिता निभाया। इन श्रमिकों को प्रति दिवस 305 रूपए की दर से मजदूरी का भुतान किया गया। पौधे रोपित करने के पश्चात पौधों की समुचित देखरेख हेतु बड़ेबेंदरी निवासी भूमिहीन परिवार के  अनंतराम को रखा गया, जिन्हे पौधों की सुरक्षा एवं देखरेख के एवज में 75 हजार रूपए से अधिक पारीश्रमिक का भुगतान किया गया। इस उच्च तकनीक सिंचित क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण कार्य में रोजगार प्राप्त करने वाले अशोक, चुन्नीलाल, रामधर, धनसू आदि ग्राीमीणों ने बताया कि बड़ेबेन्दरी के उक्त खाली पड़े वनभूमि में वृक्षारोपण से वन क्षेत्र के घनत्व में बढ़ोतरी के साथ ही वन्य पशु-पक्षियों का आश्रय बनने लगा है। कुसुम, बहेड़ा, जामुन, ईमली जैसे फलदार पौधों से भविष्य में हमें फलों की प्राप्ति होगी। वहीं साल वृक्षों से आने वाले वर्षों में निश्चित ही साल बीज जैसे वनोपज संग्रहण का लाभ ग्रामीणों को मिलेगा। इन ग्रामीणों ने बताया कि अब उक्त वृक्षारोपण क्षेत्र के पौधे काफी बढ़ गये हैं और क्षेत्र मे चहुँओर हरियाली के साथ ठण्डी बयार बह रही है।

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