रायपुर, छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रथम स्वप्नदृष्टा, गांधी विचारक तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. खूबचंद बघेल की 121वीं जयंती के अवसर पर ...
रायपुर, छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रथम स्वप्नदृष्टा, गांधी विचारक तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. खूबचंद बघेल की 121वीं जयंती के अवसर पर आज राजधानी रायपुर स्थित महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय के सभागार में व्याख्यान-संस्मरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत संचालक श्री विवेक आचार्य, साहित्यकार डॉ. परदेशी राम वर्मा, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. के.एल. वर्मा, डॉ. सत्यभामा आडिल, डॉ. जागेश्वर प्रसाद, श्री छत्रपाल सिरमौर, श्री शेषनारायण बघेल, श्री अमित बघेल, डॉॅ. विष्णु बघेल, सहित डॉ. खूबचंद बघेल और डॉ. जगन्नाथ बघेल के परिजन एवं उत्तराधिकारी विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन संस्कृति विभाग द्वारा किया गया।
डॉ. खूबचंद बघेल के परिजन एवं साहित्यकार श्री विष्णु बघेल ने अपने व्याख्यान में कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल जी एक चिंतक, विचारक के साथ-साथ एक अच्छे प्लानर भी थे। वे योजना बनाकर उनका क्रियान्वयन भी बेहतर ढंग से करते थे। डॉ. बघेल सामाजिक परिवर्तन के सिपाही और आर्थिक मुक्ति आंदोलन के प्रतीक थे। इसीलिए उन्होंने सिलयारी में सर्वप्रथम सहकारी सोसायटी की स्थापना कर किसानों को लाभ पहुंचाया। डॉ. बघेल कहते थे, यदि आपके पास सौ एकड़ जमीन है वह एक तरफ और पढ़ाई एक तरफ। एक तरफ इसलिए पढ़ाई को महत्व देना चाहिए, इनके प्रेरणाप्रद इस वाक्य के परिणाम है कि आज छत्तीसगढ़ में अधिकांश लोग शिक्षा की ओर अग्रसर हैं। साहित्यकार डॉ. विष्णु बघेल ने बताया कि डॉ. खूबचंद बघेल कहा करते थे जब तक हम एक समाज एकजुट नहीं होंगे तो हमारा देश कैसे एक होगा। इसलिए देश की एकता और अखंडता के लिए समतामूलक समाज जरूरी है।
साहित्यकार डॉ. परदेसी वर्मा ने संस्करण सुनाते हुए कहा कि डॉ. खूबचंद बघेल वैश्विक स्तर के चिंतनशील व्यक्ति थे। वे देश की आजादी, अस्मिता और यश के लिए काम किये। डॉ. बघेल हमेशा शोषण मुक्त देश की कल्पना करते थे और निचले स्तर पर हो रहे शोषण को रोकने का प्रयत्न किया। डॉ. बघेल किसान हितैषी थे, वे किसानों के आर्थिक मजबूती के लिए सदा तत्पर रहते थे। वे सामाजिक समानता के प्रति लोगों को जागरूक करने ‘‘ऊँच-नीच’’ नाटक की ना सिर्फ रचना की बल्कि उनका मंचन कर अस्पृश्यता के प्रति लोगों को जागरूक किया। डॉ. परदेसी वर्मा ने संस्मरण में एक घटना का उदाहरण देते हुए बताया कि ग्राम चंदखुरी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी द्वारा अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति के बाल काटे जाने पर उन्हें समाज से छोड़ दिया जाता है फिर डॉ. खूबचंद बघेल ने ऊंचे पद में रहने के बावजूद उस ग्राम में ‘‘ऊँच-नीच’’ नाटक का मंचन कर ग्रामीणों को जागरूक किया। आखिरकार ग्रामीणों ने माफी मांगी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को ससम्मान समाज में पुनः मिला लिया। डॉ. परदेशी वर्मा ने कहा कि डॉ. खूबचंद बघेल यश और प्रसिद्धि पाने के लिए लेखन व रचना नहीं करते थे, बल्कि सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए लेखन व रचना करते थे।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. के एल वर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि डॉ. खूबचंद बघेल का नाम आते ही आत्मगौरव, आत्मसम्मान का भाव महसूस होने लगता है। डॉ. बघेल का व्यक्तित्व और कृतित्व आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। डॉ. वर्मा ने कहा कि वर्तमान सरकार भी डॉ. खूबचंद बघेल के सोच के अनुरूप नरवा, गरवा, घुरूवा, बाड़ी से ग्रामीण सशक्तिकरण एवं गांधी जी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना को साकार कर रहे हैं। डॉ. खूबचंद बघेल की सोंच को साकार करते हुए किसानों की आर्थिक मजबूती के लिए किसानों के अनाज उचित दाम पर खरीद रहे हैं। किसानों के लिए नीतिगत निर्णय लेकर किसानों और ग्रामिणों के समृद्धि के लिए कार्य कर रहे हैं। प्रोफेसर वर्मा ने कहा कि डॉ. बघेल ने समतामूलक और शोषणमुक्त समाज की कल्पना की है जिसकी रक्षा और संवर्धन करना हम सबका कर्तव्य है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जागेश्वर प्रसाद ने संस्मरण में डॉ. खूबचंद बघेल जी प्राथमिक शिक्षा से उच्च शिक्षा फिर पढ़ाई और नौकरी छोड़कर कैसे गांधी जी के आंदोलन में शामिल हुए और इस तरह जनसेवा में रम गएं। डॉ. प्रसाद ने डॉ. खूबचंद बघेल के सपने को संजोने छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी भाषा के उत्थान पर बल दिया। डॉ. खूबचंद बघेल के परिजन श्री छत्रपाल सिरमौर ने बताया कि वे बचपन से उनके साथ रहे। श्री सिरमौर ने बताया कि डॉ. बघेल जी हमेशा सत्य और गांधी जी के विचारों की बात किया करते थे। वे कहा करते थे कि सत्य और अहिंसा के बल पर दुनिया को जीता जा सकता है। हमें गांधी जी से प्रेरणा लेनी चाहिए। डॉ बघेल छत्तीसगढ़ी भाषा के पैरोकार थे। वे कहते थे चाहे आप अंग्रेजी, चाइनीज, जापानी कितने भी भाषा सीख लें, लेकिन अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए। परिजन श्री शेषनारायण बघेल ने बताया कि डॉ. बघेल ने लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया। उन्होंने जनता के पैसे से जनता स्कूल खोला और घर-घर जाकर बच्चों को ढूंढ-ढूंढकर उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित किया। एक घटना को याद करते हुए श्री शेषनारायण बघेल ने बताया कि एक बार एक कार्यक्रम में अस्पृश्य समझे जाने वाले बालक को पानी पिलाने के लिए बुलवाया मंच में बैठे लोग एक-दूसरे का मुंह तांकने लगे। तब डॉ. खूबचंद बघेल जी ने स्वयं उस बच्चे के हाथों पानी पीकर अस्पृश्यता की भ्रांति को तोड़ने का काम किया।
परिजन अमित बघेल ने कहा कि डॉ. खूबचंद बघेल जी शिद्दत और ईमानदारी के साथ देश की आजादी तक जोश और जुनून की आग को बुझने नहीं दिया। लोगों को स्वतंत्रता के लिए शंखनाद किया। अमित बघेल ने कहा कि 19 जुलाई डॉ. खूबचंद बघेल की जयंती और 22 जनवरी अवसान दिवस मनाने से ही डॉ. बघेल की सपने सकार नहीं हो सकता, बल्कि उनके बताएं हुए रास्ते पर चल कर ही सशक्त और समृद्ध छत्तीसगढ़ का निर्माण हो सकेगा। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सत्यभामा आडिल ने भी व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डॉ. खूबचंद बघेल और डॉ. जगन्नाथ बघेल के परिजन और उनके उत्तराधिकारी तथा संस्कृति विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। वर्चुअल माध्यम से भी प्रदेश की विभिन्न लोग जयंती समारोह में शामिल हुए।
No comments